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<p style="text-align: justify;">असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्व शर्मा ने बुधवार को कहा कि राज्य सरकार जिलेवार तरीके से धार्मिक समूहों को अल्पसंख्यकों का दर्जा देना चाहती है न कि मौजूदा मानदंडों के आधार पर. शर्मा ने विधानसभा में कहा कि राज्य सरकार राज्य स्तर पर अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए गाइडलाइंस तैयार करने के निर्देश की मांग करते हुए वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में एक पक्ष बनने की कोशिश करेगी. </p>
<p style="text-align: justify;">उन्होंने कहा, "असम सरकार इस हक में है कि अल्पसंख्यकों की परिभाषा जिलेवार बदली जाए. हालांकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है, लिहाजा हम फैसले का इंतजार करेंगे.” शर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार भी अल्पसंख्यकों के आर्थिक, शैक्षणिक, लिंग और अन्य सामाजिक मानकों को देखते हुए उन्हें जिला और ब्लॉकवार परिभाषित करने के हक में है.</p>
<p style="text-align: justify;">उन्होंने कहा कि केंद्र ने हाल ही में अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने एक हलफनामा पेश किया है, जिसमें कहा गया कि राज्य सरकारें किसी राज्य के भीतर हिंदुओं सहित किसी भी धार्मिक या भाषाई समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">मुख्यमंत्री ने कहा कि संविधान में धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक की कोई परिभाषा नहीं है, लेकिन यह केवल अल्पसंख्यकों के दो रूपों के अधिकारों की बात करता है.</p>
<p style="text-align: justify;">कांग्रेस विधायक रकीबुल हुसैन के प्रस्ताव को मंजूर करते हुए कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस में पार्टी बनेगी, शर्मा ने कहा कि उन्होंने मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से इस बारे में बात की है. </p>
<p style="text-align: justify;">उन्होंने कहा, "मैं अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर मामले में असम सरकार को एक पक्ष बनाने की कोशिश करूंगा और अल्पसंख्यकों को जिलेवार परिभाषित करने पर अपने विचार रखूंगा. मामला धार्मिक अल्पसंख्यक का है, भाषाई अल्पसंख्यक का नहीं.</p>
<p style="text-align: justify;">उन्होंने यह भी कहा कि उनकी भाषाई अल्पसंख्यकों को परिभाषित करने में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि यह ‘बेहद संवेदनशील’ मामला है. असम का हाल के वर्षों में विकास हुआ है. मैं कोई गड़बड़ नहीं चाहता. </p>
<p style="text-align: justify;">शर्मा ने कहा कि केंद्र ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 को अधिनियमित किया था और मुसलमानों, ईसाइयों, पारसी, सिखों और बौद्धों को अल्पसंख्यकों के रूप में अधिसूचित किया था और बाद में जैनियों को. </p>
<p style="text-align: justify;">शर्मा ने संविधान का हवाला देते हुए कहा, सुप्रीम कोर्ट ने भी यह बात कही है कि धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के साथ समान व्यवहार किया जाता है. मुश्किल यह है कि भाषाई अल्पसंख्यकों को लेकर कोई परिभाषा नहीं है और कोई सीमा भी तय नहीं है कि कितने लोगों को एक भाषा बोलनी चाहिए ताकि उन्हें भाषाई अल्पसंख्यक बुलाया जा सके. </p>
<p style="text-align: justify;">मुख्यमंत्री ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी समुदाय को अल्पसंख्यक तब माना जाएगा, जब उसकी भाषा, संस्कृति और पहचान को दूसरे समुदाय से खतरा हो. आगे शर्मा ने कहा, ‘तो इस मामले में हम मुसलमानों और ईसाइयों को सीधे अल्पसंख्यक नहीं कह सकते. यह किसी राज्य में स्थिति और माहौल पर निर्भर करता है.’ भाषाई अल्पसंख्यकों के मामले पर मुख्यमंत्री ने असम का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा, कि बराक वैली और धुबरी जिले में बंगाली अल्पसंख्यक नहीं हैं लेकिन वह ऊपरी असम के इलाकों और डिब्रूगढ़ में अल्पसंख्यक हैं. </p>
<p style="text-align: justify;">उन्होंने कहा, इसी तरह, यह कॉन्सेप्ट है कि पिछले 75 वर्ष से मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं. इसे चुनौती दी गई. असम में कई जिलों में मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं. अब किसी राज्य में हिंदू भी स्थिति और खतरे को देखते हुए अल्पसंख्यक हो सकते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, असम की 3.12 करोड़ जनसंख्या में हिंदू 61.47 प्रतिशत हैं. मुस्लिमों की आबादी 34.22 प्रतिशत है. वह कई जिलों में बहुमत में हैं. ईसाई 3.74 प्रतिशत हैं जबकि सिख, बौद्ध और जैन एक प्रतिशत से भी कम हैं. </p>
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