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सामाजिक समरसता का संदेश देता है ऐतिहासिक बरुआरी दुर्गा पूजा मेला – संजय सिंह

कलश – स्थापना से अनवरत 11 दिन तक चलने वाला ‘ देवों के गढ़ ‘ गढ़ बरुआरी का प्रसिद्ध दुर्गा पूजा मेला श्रद्धा और भक्ति से सराबोर तो रहता ही है साथ ही सामाजिक समरसता की मिसाल भी है. जाति-धर्म, ऊंच – नीच, अमीर – गरीब का भेद भुलाकर कोशी के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं और दुकानें सजाते हैं. मेले में विभिन्न समुदायों के रिश्ते करघे पर चढ़े सूत की तरह हो जाते हैं. मेले में प्रेम-सौहार्द और भाईचारा निभाकर यहां की गंगा-जमुनी तहजीब को और मजबूत कर जाते हैं.दुर्गा पूजा मेला की प्रासंगिकता के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न पूछने पर बरुआरी दुर्गा पूजा समिति के संरक्षक सह वर्तमान बरुआरी पंचायत समिति सदस्य श्री संजय कुमार सिंह ने कहा कि मोबाइल युग में आज जबकि मानव – जीवन एकाकी हो गया है, मेला और त्योहार में एक-दूसरे से मिलने के अवसर होते है. मेलों और त्यौहारों ने रिश्तेदारों और दूर दूर भौगोलिक स्थानों पर रहने वालों दोस्तों के साथ मुलाकात जैसे सामाजिक सम्मेलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इन आयोजनों के पीछे धार्मिक महत्व और सामाजिक संदेश जैसे सामाजिक महत्व होते है. इस क्षेत्र के अधिकांश त्योहार पौराणिक परंपराओं पर आधारित हैं.
मेला न केवल मनोरंजन के साधन हैं, अपितु ज्ञानवर्द्धन के साधन भी होते हैं. प्रत्येक मेले का इस देश की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं से जुड़ा होना इस बात का प्रमाण हैं कि ये मेला किस प्रकार जन मानस में एक अपूर्व उल्लास, उमंग तथा मनोरंजन करते हैं.श्री सिंह ने आगे कहा कि बरुआरी दुर्गा पूजा मेला में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप का एक अद्वितीय और दुर्लभ सामंजस्य दिखाई देता है, जो कहीं और नहीं दिख पाता